कर्ण-दुर्योधन की दोस्ती

दुर्योधन 100 कौरव में सबसे बड़ा था. दुर्योधन अपने कजिन भाई पाडवों से बहुत द्वेष रखता था, वह नहीं चाहता था कि हस्तिनापुर की राजगद्दी उससे भी बड़े पांडव पुत्र युधिस्थर को मिले. कर्ण दुर्योधन की मुलाकात द्रोणाचार्य द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हुई थी. यहाँ सभी धनुर्वि अपने गुण दिखाते है, इन सब में अर्जुन श्रेष्ट रहता है, लेकिन कर्ण उसे सामने से ललकारता था तब वे उसका नाम जाती पूछते है क्यूंकि राजकुमार सिर्फ क्षत्रीय से ही लड़ते थे. कर्ण जब बोलता है कि वो सूद्र पुत्र है तब सभी उसका मजाक उड़ाते है भीम उसे बहुत बेइज्जत करता है. ये बात कर्ण को अंदर तक आहात करती है, और यही वजह बनती है कर्ण की अर्जुन के खिलाफ खड़े होने की. दुर्योधन ये देख मौके का फायदा उठाता है उसे पता है कि अर्जुन के आगे कोई भी नहीं खड़ा हो सकता है तब वो कर्ण को आगे रहकर मौका देता है वो उसे अंग देश का राजा बना देता है जिससे वो अर्जुन के साथ युद्ध करने के योग्य हो जाता है. कर्ण इस बात के लिए दुर्योधन का धन्यवाद करता है और उससे पूछता है कि वो इस बात का ऋण चुकाने के लिए क्या कर सकता है, तब दुर्योधन उसे बोलता है कि वो जीवन भर उसकी दोस्ती चाहता है. इसके बाद से दोनों पक्के दोस्त हो जाते है.

दुर्योधन कर्ण पर बहुत विश्वास करते थे, उन्हें उन पर खुद से भी ज्यादा भरोसा था. इनकी दोस्ती होने के बाद दोनों अधिकतर समय साथ में ही गुजारते थे. एक बार दोनों शाम के समय चोपड़ का गेम खेल रहे थे, तभी दुर्योधन वहां से चले गए तब उनकी पत्नी भानुमती वहां से गुजरी और अपने पति की जगह वो खेलने बैठ गई. किसकी बारी है इस बात को लेकर दोनों के बीच झगड़ा होने लगा, तब कर्ण भानुमती से पांसा छीनने लगता है, इसी बीच भानुमती की माला टूट जाती है और मोती सब जगह फ़ैल जाते है और उसके कपड़े भी अव्यवस्थित हो जाते है. तभी दुर्योधन वहां आ जाता है और दोनों को इस हाल में देखता है. दुर्योधन कर्ण से पूछता है कि किस बात पर तुम लोग लड़ रहे हो, जब उसे कारण पता चलता है तब वह बहुत हंसता है. इसके बाद भानुमती दुर्योधन से पूछती है कि आपने मुझपर शक क्यूँ नहीं किया, तब दुर्योधन बोलता है कि रिश्ते में शक की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, अगर शक आ जाये तो रिश्ता ख़त्म होने लगता है. मुझे कर्ण पर पूरा विश्वास है वो कभी मेरे विश्वास को नहीं तोड़ेगा.

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